December 22, 2025

Naval Times News

निष्पक्ष कलम की निष्पक्ष आवाज

भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है सामा- चकेबा, मिथिला: बिहार का पर्व

Img 20231125 Wa0025
  •  छठ पर्व के उपरांत होती है, सामा-चकेबा पर्व की शुरुआत 

विकास झा, हरिद्वार:  सामा-चकेवा: सामा चकेवा एक लोक उत्सव है। जों भाई- बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।

यह पर्व छठ महापर्व के समाप्त होने के बाद शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को खत्म हो जाता है।

देखा जाए तो भाई – बहन के अटूट प्रेम का त्योहार न सिर्फ रक्षाबंधन और भाई दूज है, बल्कि सामा चकेवा भी है। भले ही इस त्योहार को देशभर में न मनाया जाता है, लेकिन यह मिथिला और बिहार का महत्वपूर्ण पर्व है। खासकर सामा चकेवा मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व है।

इस पर्व का पर्यावरण, पशु-पक्षी और भाई बहन के स्नेह संबंधों को गहरा करने का प्रतीक है। भाई और बहन के प्यार का त्योहार सात दिनों तक चलता है। इस सामा चकेवा त्योहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष के सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा की रात तक चलता है।

बता दें कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को महिलाएं सामा चकेवा बनाती हैं। इस पर्व को मनाने के दौरान महिलाएं लोक गीत गाती हैं और अपने भाई के मंगल कामना के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। गांव में इस पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

इस पर्व को मनाने के दौरान महिलाएं गाना गाती हैं और पर्व का उत्सव मनाती हैं। सभी बहने इस पर्व को अपने भाई के मंगल कामना के लिए मनाती हैं और रोजाना मैथली गीत गाकर त्योहार का उत्साह मनाती हैं।

इस पर्व को लेकर लोगों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवती की एक बेटी सामा और बेटा चकेवा थे। सामा के पति का नाम चक्रवाक था। एक बार चूडक नाम के सूद्र ने सामा के ऊपर वृंदावन में ऋषियों के संग रमण करने का अनुचित आरोप भगवान श्री कृष्ण के सामने लगाया था, जिससे श्री कृष्ण क्रोधित होकर सामा को पक्षी बनने का श्राप दे देते हैं।

श्राप के बाद सामा पंछी बन वृंदावन में उड़ने लगती है, सामा के पक्षी बनने के बाद सामा के पति चक्रवाक भी स्वेच्छा से पक्षी बनकर सामा के साथ भटकने लगते हैं। भगवान के श्राप के कारण ऋषियों को भी पक्षी का रूप धारण करना पड़ता है।

सामा का भाई इस श्राप से अनजान जब लौटकर आता है और उसे अपनी बहन सामा के पंछी बनने की कथा के बारे में पता चलता है तो वह बहुत दुखी होता है और कहता है कि श्री कृष्ण का श्राप टलने वाला नहीं है और अपनी बहन को वापस मनुष्य रूप में पाने के लिए चकेवा भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने चले जाता है।

जिसके बाद भगवान चकेवा की तपस्या से प्रसन्न होकर सामा को श्राप से मुक्त करते हैं। सामा चकेवा का यह पर्व इस घटना के बाद हर साल मनाया गया।

सामा चकेवा का खेल खेलने के लिए महिलाएं सामा और चकेवा की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं। फिर उसे सुखाकर बांस की डलिया में रखती हैं। सूखने के बाद मूर्तियों को रंग से रंगाई करती हैं और सजाती हैं। सजाने के बाद सभी बहने उन मूर्तियों के संग खेलती हैं और गीत गाते हुए अपने भाई की सलामती की प्रार्थना करती हैं।

महिलाएं एवं लड़कियां सिर के ऊपर उस बांस की डलिया को लेकर चांदनी रात में गीत गाते हुए गलियों में घूमाती हैं। पूर्णिमा के दिन सभी मूर्ति और खिलौनों को विसर्जित किया जाता है।

About The Author