बेंगलुरु में ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने से जुड़ी कार्यसमूह की पहली बैठक सफलतापूर्वक संपन्न हुई। 18 सदस्य देशों, 9 विशेष आमंत्रित देशों और 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के 110 से अधिक प्रतिनिधियों ने इस पहली बैठक में भाग लिया।
अध्यक्ष के रूप में भारत ने ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने से जुड़ी अपनी उपलब्धियों और भारत सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों, जैसे सौभाग्य, उज्ज्वला और उजाला योजनाओं के माध्यम से देशवासियों को स्वच्छ ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने संबंधी अपनी सफलता पर प्रकाश डाला।
लाइफ अभियान (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) के माध्यम से मांग और जिम्मेदारीपूर्ण खपत को बढ़ावा देने के भारत के आह्वान को सभी भाग लेने वाले देशों का पूर्ण समर्थन मिला।
अध्यक्ष के रूप में भारत द्वारा प्रस्तावित छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को सदस्य देशों से भी काफी समर्थन मिला, जिनमें शामिल हैं- (i) तकनीकी कमियों को दूर करके ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाना (II) ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने के लिए कम लागत वाला वित्तपोषण (III) ऊर्जा सुरक्षा और विविध आपूर्ति श्रृंखलाएं (IV) ऊर्जा दक्षता, औद्योगिक कम कार्बन के लिए बदलाव और जिम्मेदारीपूर्ण खपत, (V) भविष्य के ईंधन: हरित हाइड्रोजन और जैव-ईंधन तथा (VI) स्वच्छ ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच और ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने से जुड़ा न्यायपूर्ण, किफायती और समावेशी मार्ग।
दक्षता को बढ़ाना और इलेक्ट्रोलाइज़र, फ्यूल सेल, कार्बन अवशोषण उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) की लागत को कम करना, बैटरी भंडारण के लिए उन्नत रसायन सेल और छोटे मॉड्यूलेटर परमाणु रिएक्ट आदि की भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों के रूप में पहचान की गयी।
वैश्विक स्तर पर ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने से जुड़े ऊर्जा सुरक्षा के महत्व पर विचार-विमर्श हुआ। यह स्वीकार किया गया कि ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने के क्रम में प्रत्येक देश का अपने यहां उपलब्ध ऊर्जा के स्त्रोतों पर आधारित ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव को अपनाने का अपना एक मार्ग होगा।
भविष्य में नेट-जीरो के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, 2021 के 29 प्रतिशत की तुलना में 2050 में दुनिया की 90 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय स्रोतों से आनी चाहिए। वैश्विक सौर और पवन क्षमताओं को गुणात्मक रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है। अनुमान है कि 2020 और 2050 के बीच केवल सौर क्षमता ही 17 गुनी बढ़ेगी। 2050 तक, विश्व स्तर पर बिजली क्षेत्र में वार्षिक बैटरी उपयोग को 300जीडब्ल्यू से अधिक बढ़ना होगा, यानी, 2021 में बैटरी आवश्यकता से 51 गुना अधिक।
इसी तरह, हरित हाइड्रोजन के लिए भी गुणात्मक वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जहां 2030 तक इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता (~850 जीडब्ल्यू) की 129 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर की आवश्यकता है।
एक प्रमुख चुनौती के रूप में आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की तत्काल आवश्यकता की पहचान की गयी, क्योंकि दुनिया नवीकरणीय उर्जा क्षमताओं के निर्माण में वृद्धि कर रही है। एक विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 2022 में, प्रमुख प्रौद्योगिकियों- सौर पीवी मॉड्यूल (~ 480 जीडब्ल्यू), पवन (~120 जीडब्ल्यू), लिथियम-आयन बैटरी (1000 जीडब्ल्यूएच), और 50% से अधिक इलेक्ट्रोलाइज़र (8 जीडब्ल्यू प्रतिवर्ष)- की 80 प्रतिशत से अधिक विनिर्माण क्षमता केवल तीन देशों में केंद्रित हैं। उदाहरण के लिए, पिछले दशक में, सौर पीवी सामग्री के वैश्विक व्यापार का 70 प्रतिशत हिस्सा, केवल पांच देशों से है, जबकि पवन ऊर्जा के क्षेत्र के कुल व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा केवल चार निर्यातक देशों के पास है।
लिथियम-आयन बैटरी (एलआईबी) का निर्माण भी कुछ देशों में ही केंद्रित है। कुल व्यापार में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी, केवल चार देशों की है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान में आरई विनिर्माण अत्यधिक केन्द्रित है और व्यापार प्रवाह, ऊर्जा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करता है, सदस्य देशों ने स्थानीय विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए निर्माण क्षमता को बढ़ाने और नई ऊर्जा प्रणाली की प्रमुख सामग्रियों, महत्वपूर्ण खनिजों और कल-पुर्जों के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
हरित हाइड्रोजन/अमोनिया को बढ़ावा देने को अत्यधिक समर्थन मिला। कुछ सदस्यों ने, इसके अलावा, कम-कार्बन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की पूरी श्रृंखला पर विचार करने का प्रस्ताव दिया।
वित्तपोषण की लागत को कम करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के वित्त के साथ-साथ निजी क्षेत्र द्वारा वित्तपोषण की आवश्यकता पर सुझाव दिए गए। आमंत्रित देशों ने वैश्विक दक्षिण के देशों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखने पर विचार साझा किए। उन्होंने इन प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारों को स्पष्ट दीर्घकालिक रूपरेखा देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
सदस्य देशों ने कम-कार्बन वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए ऊर्जा दक्षता को “फर्स्ट फ्यूल” के रूप में मान्यता दी और उनके द्वारा लागू की गयी विभिन्न राष्ट्रीय नीतियों पर प्रकाश डाला। ये 2030 तक ऊर्जा दक्षता में सुधार की वैश्विक दर को दोगुना करने के बारे में रोडमैप के अपेक्षित परिणाम के लिए क्रमिक आवश्यकताओं पर अच्छी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। हरित विकास और हरित रोजगार को बढ़ावा देने के साधन के रूप में उद्योग और परिवहन के विद्युतीकरण के महत्व पर जोर दिया गया।
आईईए की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड संकट के दौरान दुनिया में 75 मिलियन लोग सामर्थ्य में कमी के कारण बिजली की सुविधा से वंचित हो गए। विश्व स्तर पर लगभग 2.4 बिलियन लोग स्वच्छ खाना पकाने की प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ईंधन की सुविधा से वंचित हैं, संभावना है कि अतिरिक्त 100 मिलियन लोग भी, जिनकी स्वच्छ ईंधन तक पहुंच है, इस सुविधा से वंचित हो जायेंगे। सदस्य देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि ऊर्जा के हरित स्रोतों को अपनाने के लिए सभी एसडीजी में न्यूनतम व्यापार-बदलाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि कोई पीछे न रह जाए।
कुछ सदस्य देशों ने ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए; बदलाव के दौर में प्राकृतिक गैस की जीवाश्म ईंधन के रूप में पहचान किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। समूह ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने के दौर में; इथेनॉल, संपीडित बायोगैस, हरित हाइड्रोजन जैसी ईंधन की एक विस्तृत श्रृंखला भविष्य के ईंधन के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।