राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा में बुधवार को “साहित्य समाज और हिंदी सिनेमा ” विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (ऑनलाइन तथा ऑफलाइन)का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की संयोजक डॉ. कविता मीणा एवं श्री धर्म सिंह मीणा थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण से किया गया तदुपरांत सभी अतिथियों का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया गया।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ कविता मीणा ने सभी देश विदेश से जुड़े हुए विषय विशेषज्ञों का परिचयात्मक विवरण प्रस्तुत किया। डॉक्टर मीणा ने विषय प्रवर्तन करते हुए सिनेमा के इतिहास का प्रारंभ से लेकर आज तक के सिनेमाओं की चर्चा करते हुए उनके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया और कहा कि ” आज आवश्यकता है कि गुणात्मक फिल्मों का निर्माण हो, साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्में अधिक बनाई जाए ताकि समाज एवं राष्ट्र का उत्थान हो सके।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि “आज का सिनेमा समाज में घटित घटनाओं और विभिन्न समस्याओं को आधार बनाकर समाज में चेतना लाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। युवा वर्ग को इससे सकारात्मक प्रेरणा लेनी चाहिए।”

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ संजीव भानावत मीडिया विशेषज्ञ संपादक -कम्युनिकेशन टुडे, जयपुर ने कहा कि सिनेमा और साहित्य दोनों में रचना धर्मिता महत्वपूर्ण है प्रारंभ में सिनेमा का स्वरूप आदर्श उन्मुक्त था जिसमें धार्मिक और पौराणिक विषय को लेकर फिल्में बनाई जाती थी लेकिन यह दौर बहुत लंबे समय तक नहीं चला फिल्मों का संबंध व्यवसाय से हो गया अधिक से अधिक लोगों की अभिरुचि के अनुसार फिल्में बनाई जाने लगी। लंदन ( यू.के) से जुड़े मुख्य वक्ता श्री तेजेंद्र शर्मा संपादक- पुरवाई ने कहा कि साहित्य अंतर्मुखी और बहिर्मुखी दोनों होता है किंतु सिनेमा केवल बहिर्मुखी होता है

उन्होंने कहा कि जिस विषय वस्तु को साहित्य समझाने में 3.4 प्रश्न लगाता है उसी विषय वस्तु को सिनेमा 10 मिनट में अभिव्यक्त कर देता है। पुराने हिंदी सिनेमा के गीतों के शब्द संयोजन व भावार्थ को बताते हुए उन्होंने पुराने हिंदी फिल्मी गीत और नए हिंदी फिल्मी गीतों का अंतर भी स्पष्ट किया तथा कहा कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में हिंदी सिनेमा को साहित्य के साथ स्थान दिया जाना चाहिए ताकि युवा छात्र पुरानी फिल्मों की विषय वस्तु एवं गीतों के भावार्थ से परिचित हो सकें।

रुस सेविशिष्ट वक्ता श्री इल्या ओस्तपेंकों, हिंदी भाषा प्रचारक वोरोनेज (रशिया ) ने रूसी साहित्य को हिंदी सिनेमा से जोड़कर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। विशेष वक्ता डॉ ऋतु दुबे प्राचार्य, निस्कॉर्ट मीडिया कॉलेज गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि ” जब जब साहित्य बनता है और फिल्म बनती है तो उसकी राजनैतिक पक्ष को नकारा नहीं जा सकता।

राजनीति पक्ष पक्षी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हिंदी सिनेमा जगत को प्रभावित करता रहा है साथ ही उन्होंने दक्षिण फिल्मों की चर्चा भी की एवं सिनेमा के नकारात्मक प्रभाव की जिम्मेदारी उन्होंने समाज के हर व्यक्ति की बताई‌। कार्यक्रम में वक्ता के रूप में डॉ आदित्य कुमार गुप्ता , सह आचार्य राजकीय कला महाविद्यालय कोटा ने कहा कि ” आजकल कुछ फिल्में ऐसी है कि अश्लीलता और हिंसा के कारण उनसे समाज में नकारात्मक संदेश जाता है।

दूरदर्शन के माध्यम से जो भी धारावाहिक या सिनेमा दिखाया जाए वह ऐसा हो कि युवा पीढ़ी को उचित मार्गदर्शन मिले। संगोष्ठी के अंतर्गत लगभग 450 शोधार्थियों एवं आचार्यों ने अपना पंजीकरण करवाया संगोष्ठी में देश विदेश से जुड़े शोधार्थियों एवं आचार्यों ने ऑनलाइन तथा ऑफलाइन पत्र वाचन प्रस्तुत किया।

ऑफलाइन के अंतर्गत महाविद्यालय के प्राचार्य, डॉ.प्रभा शर्मा , डॉ.मनीषा शर्मा, श्रीमती मिथिलेश सोलंकी, आदि ने अपना पत्र वाचन किया इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत तकनीकी कार्य अर्चना सहारे, डॉ जीतेश जोशी एवं प्रियंका वर्मा ने किया।

संगोष्ठी का संचालन डॉ. कविता मीणा एवं डॉ. दीप्ति जोशी ने किया। श्री धर्म सिंह मीणा ने सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।