हरिद्वार निवासी शशि मैन्दोलिया की हृदयस्पर्शी कविता मैं बहुत व्यथित हूँ……..
मैं बहुत व्यथित हूँ……..
तुम कामयाबी पाओ, उन्नति करो
मैं तुम्हारी पत्नी, दिन रात यही दुआ करती हूं।
जब भी ईश्वर से प्रार्थना करती हूं,
तुम्हारी प्रगति तुम्हारा स्वास्थ्य ही मांगती हूं।
तुम्हारे बढ़ते हर एक पग पर,
मैं अपना आंचल बिछाती हूं।
तुम्हारे पथ के काँटों को मैं
अपने हाथो से हटाती हुं
तुम्हारे हर एक पग को मेरी दुआओं मेरी प्रार्थनाओं का
एक एक पल समर्पित हैं
कैसे भूल गए तुम, तुम्हारी हर जिम्मेदारी हर दायित्व में,
मैंने भागीदारी निभाई है.
बच्चों के पालन पोषण में भी अपनी जिम्मेदारी उठाई हैं
फिर क्यों आज मैं खुद को छोटा और उपेक्षित पाती हूँ
दिल उदास हो जाता है जब तुम्हारी ताकत नहीं गलती जानी जाती हूँ
हीन भावना से ग्रसित हो जाती हूँ मैं
जब तुम्हारी आँखों में अपने लिए सम्मान नहीं, आलोचना और उलाहना पाती हूँ।
हे मेरे पति, तुम्हारी कामयाबी तुम्हारी तरक्की से मैं फूली नहीं समाती हूँ
फिर क्यों तुम्हारी वार्त्ता में, मैं अपना स्तर निम्न पाती हूँ।
तुम बिसर गए शायद उतार का वो समय था,
जब तुम्हारे मनोबल को मैंने बढ़ाया था।
जब सब ने तुम्हे कमतर आँका तो
मैंने ही हौसला बढ़ाया था
अरे तुम्हारे लिए तो मैंने ढलते सूरज को भी जल चढ़ाया था
बने जब भी तुम उपहास के पात्र तो मैंने ढाँढस बंधाया था
फिर क्यों आज प्रियतम मेरे हिस्से में सिर्फ तिरस्कार आया
तुम्हारे इस सफर में क्या मेरा कोई योगदान नहीं।
आज शायद मैं तुम्हारे काबिल नहीं ,
जतला रहे तुम समय समय पर ,
बढ़े हो तुम बिन किसी सहारे।
आज तुम हो रहे कामयाब हो, जग में कमा रहे नाम हो ।
मैं खुश हूँ , गर्वित हूँ.
पर सच कहु प्रिये, बहुत व्यथित हूँ ।
मैं बहुत व्यथित हूँ………..
रचयिता: शशि मैन्दोलिया