कोटा निवासी स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार एवं होम्योपैथी प्रैक्टिशनर श्री रमेश सक्सेना ”अनिल” की पुत्री श्रीमती शर्मिला सक्सेना अपने होम्योपैथी ज्ञान एवं लेखन से कई लोगो को प्रेरणा देकर होम्योपैथी को प्रचारित करती रही हैं।
विश्व होम्योपैथी दिवस पर प्रस्तुत हैं उनका एक लघु लेख…..
१०अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन जर्मन चिकित्सक डॉक्टर हैनिमैन का जन्मदिन होता है जिन्हें होम्योपैथी का जनक कहा जाता है,जिन्होंने बेहद सस्ती,सुलभ चिकित्सा पद्धति से अवगत करवाया।
होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें अन्य पद्धतियों की तरह रोग की चिकित्सा नहीं की जाती अपितु रोगी के लक्षणों के आधार पर रोगी की चिकित्सा की जाती है।
एलोपैथी को अगर हम देखें तो अल्ट्रासाउंड, एक्सरे और तमाम लैब टेस्ट् के आधार पर रोग की दवाएं दी जाती हैं,कभी -कभी इनके साइड इफेक्ट्स बहुत खतरनाक होते हैं और मूल बीमारी को खत्म करने के साथ अन्य नई तकलीफें पैदा कर देती हैं,दूसरी तरफ होम्योपैथी में रोगी की प्रकृति जैसे उसे ठंडी या गर्म वस्तुओं से फायदा होता है या नुकसान,रोगी चलता या उठता -बैठता कैसे है?कोई भी तकलीफ बढ़ने या कम होने का समय जैसी बातों पर उसका इलाज किया जाता है।एक मरीज की दवा दूसरे को नहीं दी जा सकती।
लक्षणों के आधार पर दवा देने से मरीज की बीमारी जड़ से समाप्त होती है और उसके साइड इफेक्ट्स भी नहीं होते,किंतु अगर लक्षणों का सही से अध्ययन नहीं किया जाए और रोगी की प्रकृति के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं की जाती तो हानि भी हो सकती है, उदाहरण के तौर पर सल्फर नामक दवा सूर्योदय से पूर्व दी जाती है और नक्सवौमिका नामक दवा दोपहर १२बजे से पूर्व नहीं दी जाती लेकिन यदि ज्ञान के अभाव में इन्हें समयानुसार नहीं दिया जाता तो निश्चित ही हानि हो सकती है।
दवा देते समय यह भी देखना ज़रूरी है कि कौनसी दवा किस दूसरी दवा के साथ अच्छा कार्य कर सकती है और किसके साथ विपरीत असर करती है।
होम्योपैथी में निश्चित ही जीवनदायक दवाईयां हैं बशर्ते कि उनका सही अध्ययन करके उचित उपयोग किया जाए।