डा दीप्ति बगवाड़ी

जनजागृति के नायक, विराट आंदोलन के प्रणेता, गौ माता के भक्त संत गोपाल मणि जी के जीवन वृत का अवलोकन करती पुस्तक  गौमाता राष्ट्रमाता के ध्वजवाहक, गोपाल ‘मणि’: एक ऐतिहासिक वैचारिक यात्रा की समीक्षाा  कर रहीं हैं डॉ दीप्ति बगवाड़ी, आप “वीर शहीद केसरी चंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डाकपत्थर” में अंग्रेजी विभाग, सहायक आचार्य पद पर कार्ययरत  हैं.

“गौमाता राष्ट्रमाता के ध्वजवाहक, गोपाल ‘मणि’: एक ऐतिहासिक वैचारिक यात्रा, यह पुस्तक श्री सुभाष चंद्र नौटियाल, डॉ राकेश मोहन नौटियाल, एवं श्री राम भूषण बिजलवान के द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई।

यह पुस्तक देहरादून के प्रसिद्ध प्रकाशकों में से एक प्रकाशक विनसर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित की गयी है और इसका मूल्य मात्र 295 रुपये रखा गया है।

इस पुस्तक के माध्यम से विराट आंदोलन के प्रणेता, संत गोपाल मणि जी के व्यक्तित्व को समझने और उनके संघर्षों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। गोपाल मणि जी के जीवन वृत व उनकी जीवन यात्रा को समझने के लिए यह पुस्तक अपने आप में सम्पूर्ण एवं पर्याप्त है।

निसंदेह गौ माता को राष्ट्र में प्रतिष्ठित स्थान दिलवाने के लिए संत गोपाल मणि जी ने असीम संघर्ष किया और उस संघर्ष को किस प्रकार से जनआंदोलन का रूप दिया, यह पारदर्शी व दूरदर्शी संदेश समाज को जागृत करने के लिए एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ।

इस आंदोलन को हम महायज्ञ का रूप मान सकते हैं, जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों से जुड़े लोग भक्त बने व भक्तों के रूप में इस यज्ञ में अपनी ओर से त्याग, तपस्या व समर्पण रूपी स्वैच्छिक आहुति दे रहे हैं। गौ माता को राष्ट्रमाता घोषित करने के लिए संत गोपाल मणि जी के द्वारा अथक प्रयास जारी हैं।

इस पुस्तक में हम इन समस्त बिंदुओं को सरलता से समझ सकते हैं। लेखकों के द्वारा किए गए प्रयास के फलस्वरूप हम गोपाल मणि जी के अनवरत अथक प्रयास एवं जीवन यात्रा वृतांतों को लिपिबध समझते हुए उनके द्वारा किए गए गौ-गंगा संरक्षण हेतु भागीरथ प्रयासों का सम्पूर्ण वर्णन, विचारों व कथानकों का सार सरल शब्दों में समझ सकते हैं।

इस पुस्तक में वर्णित समस्त वृतांत उसी प्रकार से जीवंत है जैसे हम साक्षात संत मणि जी को सुन रहें हों। संत गोपाल मणि जी के संकल्पों और देशव्यापी उनके द्वारा किए गए संघर्ष, जिसमें गौ,गंगा,हिमालय के संरक्षण हेतु उन्होंने देश के लगभग 676 जिलों में गो प्रतिष्ठा हेतु जन जागरण यात्राएं संपन्न की तथा 29 राज्यों की राजधानियों में गौमाता हेतु संकल्प सिद्धि रैलियां संपन्न करी, आदि का वर्णन बखूबी पढ़ने को मिलता है।दिल्ली के रामलीला मैदान में गो प्रतिष्ठा आंदोलन को हज़ारों लोगों के साथ तीन बार निर्विघन सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। इसके अतिरिक्त और भी अनगिनत कार्य हैं जिससे आम जनमानस को गौ माता के लिए प्रेम व सम्मान करने की प्रेरणा जागृत होती है, इन सभी वृतांतों का वर्णन इस पुस्तक में गागर में सागर भरने की तरह प्रतीत होता है।

यह कहने में संकोच नहीं होगा कि इस पुस्तक के द्वारा जनमानस तक सरलता से पहुंचने का प्रयास किया गया है, जिससे हर घर तक गौ माता को राष्ट्र माता बनाने का ठोस व स्पष्ट संदेश पहुंचाया जा सके। पुस्तक में गोपाल मणि जी के एकमात्र संकल्प जिसमें उनका लक्ष्य भारत ही नहीं किंतु पूरे विश्व में शांति दूत के रूप में एकता का संदेश देते हुए स्पष्ट शब्दों में गौ, गंगा व हिमालय के संरक्षण एवं संवर्धन को समझना एवं आत्मसात करने पर बल दिया गया है। जैसा की विदित है, अगर वैज्ञानिकता को आधार माना जाए, उसमें भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व गौ तत्वों को ही माना जाएगा। इस आधार पर आज यह बात समझना अति आवश्यक हो जाता है कि गौ की रक्षा, उसका संरक्षण, संवर्धन व उसका सम्मान न केवल देश में, बल्कि विश्व पटल पर भी अति आवश्यक है। यह पुस्तक इन सभी विचारों पर बहुत सुंदर रूप से प्रकाश डालती है। अंत में निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि यह पुस्तक गोपाल मणि जी के राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन का न केवल विश्लेषण है बल्कि संत की सादगी भरी जीवन यात्रा और कठोर साधना को व्यक्त करता संदर्भ ग्रंथ है।

इस संदर्भ ग्रंथ के माध्यम से हमें यह समझना सरल हो जाता है कि कैसे उत्तरकाशी जिले के दूरस्थ गांव से चलकर एक साधक राष्ट्र जागृति के लिए अपने सुख,आराम व सुविधा को त्याग कर अपना समस्त जीवन मां गंगा और गौ मां की सेवा में समर्पित कर चुका है। उनका सादगी भरा जीवन एवं सादगी भरी जीवनशैली हम समस्त युवाओं के लिए प्रेरणा का अद्भुत संदेश बन गयी है। गौमाता राष्ट्रमाता के ध्वजवाहक गोपाल मणि, यह पुस्तक उनके जीवन संघर्षों का स्पष्ट प्रतिबिम्ब है।