उत्तराखंड के प्रसिद्ध जोशीमठ में तबाही का मंजर देख विशेषज्ञों के लिए भी हैरान कर देने वाला। शहर के बेतरह धंसने और दर्जनों घरों और इमारतों की दीवारों, दरवाजों, फर्श, सड़कों पर आईं दरारों का कारण पता लगाने में पहले दिन टीम को कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई।

जोशीमठ के तमाम हिस्सों से सतह के नीचे पानी का बेतरतीब ढंग से रिसाव हो रहा है। इसका कोई एक सिरा नहीं है। जोशीमठवासियों को रात में घरों के फर्श के नीचे पानी बहने की आवाजें आ रही हैं। वे बुरी तरह डरे हुए हैं। टीम के सदस्य दिनभर शहर में हो रहे सुराखों की पड़ताल करते रहे, लेकिन उन्हें कोई सुराग नहीं मिला कि आखिर जमीन के नीचे ये पानी आ कहां से रहा है।

टीम में आईआईटी रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के साथ ही सरकार के नुमाइंदे भी शामिल हैं। सभी ने अपने-अपने एंगल से जोशीमठ भू-धंसाव को देखा और कई जगह से सैंपल भी लिए।

गढ़वाल आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि पूरी टीम मिलकर इस समस्या पर अध्ययन कर रही है। इस टीम में भूस्खलन, हाइड्रोलॉजी, हिमालयन जियोलॉजी, आपदा प्रबंधन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के जाने माने विशेषज्ञ शामिल हैं। इसलिए निष्कर्ष पर एकदम पहुंचना बहुत कठिन है। यह एक साइंटिफिक स्टडी है, जिस पर हम काम कर रहे हैं। इस रिसाव का कारण क्या हैं, यह तत्काल कहना कठिन होगा।

वहीं  केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसान और उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कमेटी बनाई है। जलशक्ति मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, कमेटी में पर्यावरण व वन मंत्रालय, केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और स्वच्छ गंगा मिशन के विशेषज्ञ शामिल होंगे। कमेटी जमीन धंसने के कारणों और प्रभाव की जांच करेगी।

यह कमेटी तीन दिन में एनएमसीजी को रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी भू-धंसान से मानव बस्तियों, इमारतों, राजमार्गों, बुनियादी ढांचे और नदियों पर पड़ने वाले प्रभावों को भी देखेगी।

बता दें कि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब व औली का प्रवेशद्वार है। वहां अरसे से बेतरतीब निर्माण गतिविधियां भी चल रही हैं।

इस बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जोशीमठ में अति संवेदनशील (डेंजर जोन) क्षेत्रों में बने भवनों को तत्काल खाली कराने के निर्देश दिए हैं।